“सर्वव्यापी कूटस्थ प्रेम सभी में अनुभव करने हेतु अपने हृदय को क्राइस्ट के प्रेम की वेदी बनाइये।”
— परमहंस योगानन्द
अवकाश की ऋतु में परमहंस योगानन्दजी के आश्रमों से आप सब को शुभकामनाएं! हमारी कामना है कि आपका हृदय उस दिव्य प्रेम एवं शान्ति से परिपूरित हो जाये जिसे सभी ग्रहणशील आत्माओं नें इस पावन अवसर पर अनुभव किया है, जबकि बहुत सारे लोग प्रभु जीसस के जन्म का उत्सव मना रहें हैं।
प्रभु जीसस अवतार रूप में रूप में ईश्वर की ब्रह्मांड को संभालने वाली चेतना — कूटस्थ चैतन्य — की असीमितता एवं भव्यता पूर्ण रूप में प्रकट थी; तब भी व्यक्तिगत रूप से हमारे दिलों को उनकी हर जीव के प्रति विनम्रता और असीम करुणा अधिक प्रभावित करती है जिसमें वे जनसाधारण के मध्य रहते थे। सबके साथ सहानुभूति रखते हुए, मानवीय अनुभवों और संघर्षों को समझते हुए, प्रत्येक व्यक्ति को उन्होंने ईश्वर की संतान के रूप में ही देखा। ईश्वर स्वयं अनुभूत आत्माओं को पृथ्वी पर भेजते हुए चाहते हैं, कि हम उनके ज्ञानवर्धक सार्वभौमिक उपदेशों एवं उदाहरण को जीवन में उतारें, जिस से कि हम अपनी आत्मा के अनुभव को धर्म संगत कार्यों में व्यक्त कर सकें और सभी को प्रेममय चेतना का वरदान प्रदान कर सकें।
हमारे गुरुदेव, परमहंसजी, ने इस बात पर बल दिया था कि आध्यात्मिक रूप से शुभ अवसर हमारी आत्मा की जागृति हेतु आते हैं — ईश्वर की सार्वभौमिक प्रेम की अव्यक्त शक्ति के जागरण हेतु अनुकूल अवसर लाने के लिए। इस से हमारा जीवन परिवर्तित होता है और उन सभी को आशीर्वाद मिलता है, जिनके संपर्क में हम आते हैं।
गुरुजी ने हमें बताया कि, “आप क्षुद्रता त्याग कर अपने अंतर की व्यापकता का सपना देखिये।” उन्होंने हमें इस प्रकार असली क्रिसमस मनाने के लिए प्रेरित किया जिसमें एक दिन ऐसा निश्चित हो कि जिसे आत्मा के विस्तार हेतु ईश्वर एवं उनके सार्वभौमिक कूटस्थ चैतन्य के ध्यान में बिताया जाये जिसका अस्तित्व प्रत्येक परमाणु में है।
हम जितना दूसरों के साथ सहानुभूति पूर्वक सहयोग करते हैं, चाहे भौतिक सामग्री अथवा अपने समय का उपहार देकर, ध्यान एवं देख – रेख द्वारा, उसी अनुपात में हमारी चेतना स्वार्थी सीमाओं से निकल कर विशाल होती जाती है। जिन व्यक्तियों के कारण हमने कष्ट भी झेले हैं, यदि हम उनके साथ भी समझ, धैर्य और क्षमा की मिठास के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करेंगे, तो हम उस सर्वव्यापी चेतना की ओर आकर्षित होंगे, जिस के लिए हम इस शुभ समय मे जीसस का सम्मान करते हैं। सम्पूर्ण मानवता में जीसस की भांति दिव्य आत्मिक संबंध का ज्ञान प्राप्त कर, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं धार्मिक बाधाओं से परे, हम पाएँगे कि हमारे समय की अनेकों चुनौतियों का यही एकमात्र समाधान है।
ध्यान में, ईश्वर की सर्वव्यापकता के संपर्क में, हम गहराई से ईश्वर का अनुभव जीसस की भांति करते हैं। हृदय की सीमाएं तिरोहित हो जाती हैं और हम पूर्ण संसार को स्वयं अपने ही रूप में देखते हैं; आप उस प्रेम से किसी को वंचित करना सहन नहीं कर सकते। ईश्वर करे कि चेतना के उस विस्तार के दिव्य रूप का उपहार आप क्रिसमस पर प्राप्त करें, जिसे आप नव वर्ष में अपने साथ आगे ले जाएं। गुरुदेव ने हमें बताया कि “यदि सब लोग जीसस के आदर्शों को, जो उनके जीवन मे उदाहरण रूप में विद्यमान थे, अपने जीवन में उतारें और उन आदर्शों को ध्यान के द्वारा अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लें, तो पृथ्वी पर शांति और बंधुत्व की सहस्राब्दी आ जायेगी।”
आपको और आपके प्रियजनों के लिए आनंद, शांति एवं आशीर्वादों की कामना सहित,
श्री श्री मृणालिनी माता
संघमाता तथा अध्यक्ष, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप
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