दुनिया भर से संदेश

img_in_memoriam_daya_mata

(31 जनवरी, 1914 – 30 नवम्बर, 2010)

15 मार्च, 2011

दुनिया भर से श्री दया माता को श्रद्धांजलि

श्री श्री दया माता के देहावसान के बाद, ईमेल, पत्रों, तथा फोन द्वारा विश्व भर से शुभचिंतकों एवं मित्रों के हज़ारों सन्देश हमारे अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय में आए। कुछ भक्तों ने अपने संस्मरण में माँ के जीवनकाल के दौरान उनसे हुई भेंटों से प्राप्त प्रेरणा का उल्लेख किया। परन्तु इनमें एक बड़ी संख्या में वे भक्त भी थे जो व्यक्तिगत रूप से तो उनसे कभी नहीं मिल पाए थे, लेकिन फिर भी आन्तरिक रूप से उनके सान्निध्य का अनुभव करते वे उनके साथ एक अंतरंग सम्बन्ध महसूस करते थे।

यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे उद्धरण इस प्रिय आध्यात्मिक विभूति के साथ हुए लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों की विविधता की झलक प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इन सभी में निशर्त प्रेम एवं करुणा की एक समान अभिव्यक्ति मिलती है जो श्री श्री दया माता के स्वरूप के तत्त्व थे।

“हमारी प्रिय दया माताजी के निधन के बाद मैंने यह महसूस किया है, और मुझे लगता है अन्य कई भक्तों ने भी महसूस किया होगा, कि हमें गहनतर ध्यान तथा प्रेमपूर्ण अंतर्ज्ञान का एक ऐसा गूढ़ आशीर्वाद मिला है जो अंतर में प्रत्यक्ष सुनाई देने वाली उनकी मृदुल वाणी की फुसफुसाहट के रूप में हम तक आता है। मैंने कभी-भी इतना अगाध प्रेम अनुभव नहीं किया जितना कि आनन्द भरी स्मृति-सभा के बाद के इन दिनों में किया है। और इतना तो मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि महाप्रयाण के बाद भी हमारी प्यारी माँ हमें उसी तरह आशीष दे रही हैं, और हम पहले जैसे नहीं रहेंगे।”
— डी. ज़ेड., कैलिफ़ोर्निया

“उनके निधन के बाद हम यह अधिक अच्छी तरह समझ सकते हैं कि उन्होंने इतने वर्षों तक न केवल हम सबको वरन् पूरे विश्व को कितनी अथक और महत्त्वपूर्ण सेवा प्रदान की थी।”
— अनाम पत्र, फ़िनलैंड

“केवल हम भक्तों के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के लिए यह एक भारी क्षति है क्योंकि एक महान् सन्त और ईश्वर-प्रेमी अब इस दुनिया में नहीं रहा। दया माताजी का जीवन, आदर्श शिष्यत्व का उनका सन्देश एवं उदाहरण, हमें कई दशकों से प्रेरणा देता रहा है। जहाँ तक मेरा सवाल है, तो मैं कह सकता हूँ कि मैंने उनकी पुस्तकें इतनी बार पढ़ी हैं और उनकी टेप इतनी बार सुनी हैं कि उनकी आवाज़ मेरे मन में स्थायी रूप से बस गयी है और उनके शब्द मेरे हृदय में हमेशा के लिए अंकित हो चुके हैं। मेरी साधना में वे प्रेरणा का गहन स्रोत हैं और सदैव रहेंगी। मैं जगन्माता को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने दया माताजी को इतने लम्बे समय तक हमारे साथ रहने दिया। यद्यपि इस क्षति से मैं दुःखी अवश्य हूँ, पर दया माताजी के लिए मैं खुश हूँ क्योंकि वे अब जगन्माता के अनन्त आनन्द-सागर में मुक्त हैं। मुझे विश्वास है कि गुरुदेव के साथ अब वे जहाँ भी हैं, वहाँ से वे हमें मार्गदर्शन देती रहेंगी तथा हमारे लिए प्रार्थना करती रहेंगी।”
— एफ़. बी., ब्राज़ील

“मैंने उन्हें कई बार पत्र लिखे और हम में से प्रत्येक के प्रति उनकी व्यक्तिगत रुचि पर मैं आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाता था। उनके उत्तर हमेशा प्रेम, ज्ञान, तथा व्यावहारिक सुझाव से पूर्ण होते थे। उन्होंने कहा कि साधना को धैर्य और प्रेम से करें जैसेकि वे स्वयं किया करती थीं।

“वे जगन्माता के प्रेम की प्रकट अभिव्यक्ति थीं — प्रेम का मूर्तरूप, हमारे गुरु के प्रेम का, और ईश्वर के प्रेम का मूर्तरूप।”
— ए. आर., इटली

“परमहंस योगानन्दजी ने कहा था ‘इस संसार से मेरे जाने के बाद केवल प्रेम ही मेरा स्थान ले सकता है।’ कैवल्यदर्शनम् (The Holy Science) से हमें यह पता चलता है कि ईश्वर-प्रेम ही पूरे ब्रह्माण्ड में वह सर्वाधिक शक्तिशाली आकर्षण बल है जो सृष्टि को सदा उस दिव्य स्रष्टा की ओर वापस खींचता रहता है। इस संसार में कोई भी ‘प्रेम दे नहीं सकता'; हम तो बस खुद को शुद्ध कर सकते हैं ताकि दिव्य प्रेम हममें बह सके और हमारे माध्यम से विकीर्ण हो सके। श्री दया माता ने भी यही किया — बहुत सुन्दरता से और पूरी तरह से। जब वे सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के वार्षिक अधिवेशन में व्याख्यान देती थीं, तो उनके प्रेम के स्पन्दन से बॉनावॅन्चर होटल का कैलिफ़ोर्निया बॉलरूम पूरी तरह ओतप्रोत हो जाया करता, और हर व्यक्ति इसे अनुभूत कर पाता था, चाहे वह योगदा सत्संग सोसाइटी/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप का भक्त हो या न हो। अहम बात यह है कि उनका प्रेम उनकी सच्ची और निर्मल विनम्रता से अलंकृत और सुगन्धित रहता था। पूरी मानवजाति के इतिहास में, मैं कोई दूसरा उदाहरण नहीं जानता जहाँ किसी बड़े संगठन के नेता ने साठ वर्षों में एक बार भी संगठन की सफलता का श्रेय लेने का प्रयास न किया हो। श्री दया माता ने ऐसा कभी नहीं किया, अपने आलेखों तथा वक्तव्यों में उन्होंने सदा उन्हीं को श्रेय दिया जिन्हें दिया जाना चाहिए था — हमारे गुरु को तथा ईश्वर को। योगदा सत्संग सोसाइटी/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के संन्यासियों एवं अनुयायियों की भावी पीढ़ियों को श्री दया माताजी के उदाहरणीय जीवन से प्रेरणा मिलेगी कि वे अपना जीवन करुणामय एवं प्रेमपूर्ण विनम्रता के साथ कैसे जीयें।”
— एस. बी., जॉर्जिया

“एक ओर होते हैं महान् गुरुजन : वे प्रकाश पुंज के समान होते हैं जो संसार के विप्लव भरे समयों में मानवजाति को अंधेरे और निराशा में राह दिखाते हैं; और वहीं दूसरी ओर होते हैं शिष्य, जिनका कार्य इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। उनका कर्त्तव्य होता है उस प्रकाश पुंज को यथावत् रखना और उसका संवर्द्धन करना, ताकि वह कभी बुझने या मन्द न होने पाए, ताकि कठिन समयों में वह हमें राह दिखाता रहे। ऐसा था हमारी पूज्य दया माताजी का मिशन। वे हमारे गुरुजी की शिक्षाओं एवं उनके मिशन रूपी प्रकाश-पुंज की रक्षक थीं।”
— जे. सी., पुर्तगाल

“जब हमारी अत्यन्त प्रिय श्री दया माताजी जैसी किसी आत्मा का महाप्रयाण होता है तो भावनाओं के आवेग को शब्दों में व्यक्त कर पाना बहुत कठिन हो जाता है। जिस प्रखरता से उन्होंने गुरुजी की शिक्षाओं की शुद्धता की दत्तचित्त रक्षा की, वह वर्तमान युग में अद्वितीय है।

“उनकी आदर्श निःस्वार्थता, उनका अडिग समर्पण, उनकी अद्भुत निष्ठा, उनकी अत्यन्त प्रबल आध्यात्मिकता, और विलक्षण सादगी कुछ ऐसे गुण हैं जिनका वर्तमान संसार में नितान्त अभाव है; और इन गुणों के साथ वे उस परमब्रह्म के प्रति अथाह प्रेम और भक्तिभाव के साथ अपना कर्त्तव्य निभाती गई जिसके कभी-न-कभी साक्षात् दर्शन करने की आकांक्षा हम सभी में होनी चाहिए। उन्होंने न केवल एक आदर्श और अनुपम उदाहरण स्थापित किया, बल्कि अपने पीछे एक ऐसी विरासत भी छोड़ी जिसकी पुनरावृत्ति निकट भविष्य में हो पाना सम्भव नहीं है।

“दया माताजी के जीवन-कार्य का दायरा मानव-बुद्धि की सीमा से परे है। शब्द बोले जा सकते हैं, पुस्तकें लिखी जा सकती हैं, परन्तु ईश्वर एवं गुरुदेव के कार्य के साथ उनकी वह उदाहरणीय समस्वरता सदा जीवन्त रहेगी जिसका अनुकरण बिना अपवाद हम सभी को करना चाहिए और जिसे हमें अपने जीवन में कार्यान्वित करना चाहिए।

“अपने राजा की विजय के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार एक सच्चे योद्धा के पराक्रम के साथ ईश्वर एवं गुरुदेव की प्रेम रूपी मशाल लेकर चलने वाली वे एक सच्ची ध्वजावाहक थीं।”
— ई. आर., न्यूयॉर्क

“माताजी को हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनके प्रेम और करुणा ने हमारे हृदयों को स्पर्श किया और उन्हें दिव्य उत्साह से भर दिया।”
— ओ. तथा डी. बी., बल्गेरिया

“मुझे दया माताजी से व्यक्तिगत रूप से मिलने का सौभाग्य कभी प्राप्त नहीं हुआ, पर मेरी साधना के इन वर्षों में ऐसा कई बार हुआ जब वे मेरे सपनों में आई। एक बार जब अपने एक मित्र की मृत्यु से कुछ सप्ताह पहले मैं उसके लिए उत्कट प्रार्थना कर रहा था, तब माँ आईं और आशीर्वाद के रूप में उन्होंने अपने माथे से मेरे माथे पर स्पर्श किया। इस तरह उन्होंने मेरे अन्तर्ज्ञान द्वारा मुझे यह शक्तिशाली उपाय दिखाया कि मुझे भी अपने मित्र के लिए प्रार्थना करते समय इसी प्रकार मानसदर्शन करना चाहिए। तो आप देख सकते हैं कि हालाँकि मैं उनसे कभी मिला नहीं, फिर भी मेरे जीवन में माँ की उपस्थिति बेहद वास्तविक तथा सजीव रूप में थी।”
— एल. एम., कनॅक्टिकट

“मैं कोई कहानी नहीं सुनाना चाहता; मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि वे मेरे हृदय में हैं। वे मेरा आदर्श हैं। मैं उनके जैसा बनना चाहता हूँ।”
— अनाम पत्र, जर्मनी

“सन् 2003 में, छः महीने के अन्तराल में यह पता चला कि मेरी माँ और मेरे पति, दोनों का कैंसर सबसे बढ़ी हुई अवस्था में था, और दोनों के पास बहुत कम समय बचा था। दोनों एक साथ गम्भीर रूप से बीमार हो गए थे। मैं अन्तिम बार ईस्ट कोस्ट (East Coast) जा पायी, और मुझे संतोष है कि मेरी माँ ने मेरी बाहों में शान्तिपूर्वक आखिरी साँस ली। उनकी मृत्यु के दो दिन बाद मुझे फ़ोन आया कि मैं घर लौट आऊँ क्योंकि मेरे पति की हालत बिगड़ रही थी। मेरे घर आने के कुछ दिन बाद ही उन्हें अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष (Intensive Care Unit) में दाखिल करना पड़ा, और उनके बचने की उम्मीद नहीं थी। हालाँकि मैं जानती थी कि जगन्माता मेरे साथ हैं पर उस रात मैंने उनसे गहरी प्रार्थना की कि वे इसके प्रमाण में मुझे कोई मानवीय चिह्न भी दें। मैं स्वयं को संभाले रखने के लिए जूझ रही थी और समय-समय पर मेरा दुःख असहनीय हो जाता था।

“अगले ही दिन मेरे पास अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय से एक फ़ोन आया। मैं हतप्रभ रह गयी क्योंकि मैनें वहाँ कोई फ़ोन या पत्र नहीं भेजा था। उधर से एक मधुर आवाज़ ने कहा, “एक संन्यासिनी से आपकी बात करवाने के लिए मैं आपका समय चाहती हूँ क्योंकि आपके नाम दया माताजी का सन्देश है। लेकिन इससे पहले उन्होंने मुझसे आपको यह बताने के लिए कहा है कि जगन्माता सदा आपके साथ हैं।” यह सुनते ही मैं घुटनों के बल गिर पड़ी और असीम कृतज्ञता में सुबकने लगी। कुछ क्षण बाद ही एक संन्यासिनी फ़ोन पर आईं। उन्होंने प्रिय माताजी का संदेश पढ़कर सुनाया और मुझे सांत्वना दी। यह माताजी के ईश्वर एवं गुरु के साथ पूर्ण समस्वरता का सशक्त उदाहरण है। मुझे माताजी से सशरीर मिलने का सौभाग्य कभी नहीं मिला लेकिन उनका प्रेम तथा उनकी करुणा मेरे हृदय और आत्मा पर अंकित हैं।”
— अनाम पत्र, कैलिफ़ोर्निया

“उनकी उपस्थिति में होना एक ऐसा अनुभव है जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। हम उनकी प्रेम-तरंगों से ओतप्रोत थे और उस प्रेम ने हमें आनन्द के अश्रुओं से भिगो दिया था।”
— अनाम पत्र, कॅनेडा

“हममें से जो लोग प्रिय दया माताजी और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की शिक्षाओं के साथ वस्तुतः ‘बड़े हुए हैं’, उनके लिए माँ को अपने बीच अनुभव करना और उनके प्रेम को पहले से अधिक मुर्त्त रूप में अनुभव करना एक अद्भुत अनुभव है। मुझे लगता है कि इतने वर्षों से मैं मानो साइकिल चलाना सीख रहा हूँ और वे मरे साथ-साथ दौड़ रही हैं — कि अगर मैं अधिक डगमगा जाऊँ तो वे मुझे संभालने के लिए तैयार रहें। पर मैं जानता हूँ कि मैं ठीक रहूँगा; उन्होंने अपने उदाहरण द्वारा मुझे वह सिखाया जो मुझे सीखना चाहिए था — अडिग समर्पण तथा गुरु-शिष्य सम्बन्ध एवं परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं के प्रति सम्मान — और यह ज्ञान कि हमें ईश्वर का शाश्वत प्रेम प्राप्त है। अब हम उसी दिव्य-प्रेम को सब के लिए बहने दें।”
— एस. डब्ल्यू., ऑरिगन

“हमारी प्रिय दया माताजी के निधन का समाचार सुनते ही मुझे दुःख का झटका लगा। तीस वर्षों से अधिक की मेरी आध्यात्मिक यात्रा प्रिय माँ की अध्यक्षता और उनके आध्यात्मिक नेतृत्व में ही हुई है। मैंने माँ की पुस्तक Finding the Joy Within You उठायी और 1948 में उन्हें हुआ वह अनुभव पढ़ा जिसमें वे लगभग मृत्यु के मुख में चली गई थीं। इससे मुझे कुछ सांत्वना मिली और मैं कृतज्ञता से भर गया कि किस तरह उन्होंने बासठ वर्षों तक हमारे आध्यात्मिक परिवार और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की आधारशिला बने रहने के ऐसे कार्य का बीड़ा उठाया जो मनुष्य की कल्पना से परे है! मुझे विश्वास है कि जिस अद्भुत प्रेम का अनुभव उन्हें तब हुआ था, आज उसी में वे पूर्णतया विलीन हो चुकी हैं।”
— एम. एस., जर्मनी

“मैंने उन्हें जब भी पत्र लिखा, उन्होंने मुझे हमेशा उत्तर दिया; यहाँ तक कि तब भी जब मैंने कहा कि उन्हें उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। पूरे संसार में न जाने कितने लोगों को उन्होंने अपने आँचल की छाया तले रखा और अपने जीवन में प्रतिदिन उन्हें पत्र लिखे, परामर्श दिए, तथा उनके लिए प्रार्थना की! दया माँ एक सच्ची सन्त हैं। जिनसे भी मैं आज तक मिला हूँ, उनमें सबसे सुन्दर आत्मा। मेरा जीवन अधिकांशतः उनके उदाहरण और निःशर्त प्रेम के कारण ही बदल सका।”
— एल. डब्ल्यू., ऑरिगन

“2001 में मैंने अपनी कम्पनी शुरू की थी। माँ से आशीर्वाद लेने के लिए मैंने उन्हें पत्र लिखा, लेकिन उनकी इतनी सारी ज़िम्मेदारियों और समय के अभाव के बारे में जानते हुए वास्तव में मैं जवाब की उम्मीद नहीं कर रहा था। पर जब मेरे काम की शुरूआत का उत्साहवर्धन करते हुए उनका परामर्श भरा पत्र मुझे मिला तो मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा। उस पत्र के शब्दों में प्रेम और आत्मीयता थी, मानो वे मुझे युगों से जानती हों, जबकि हम कभी मिले भी नहीं थे।

“माँ का यह पत्र मेरे लिए अब तक अत्यन्त मंगलकारी सिद्ध हुआ है — तब से लेकर अब तक मैंने इसे फ्रेम करवा कर अपने ऑफिस के कमरे में टांगा हुआ है। जब यह पत्र मिला तो मुझे यह एक शुभ-शगुन दिखाई दिया, शायद इसलिए क्योंकि मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी। माँ का निर्मल चरित्र और सेवाशील स्वभाव, इस कॉर्पोरेट ‘जंगल’ में मेरे जैसे व्यक्तियों के लिए मार्गदर्शक प्रकाश की तरह हैं। उनका यह मूल मन्त्र, ‘प्रेम करो, सेवा करो और बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दो’, मेरे व्यापारिक सफ़र में अत्यन्त प्रेरणाप्रद सिद्ध हुआ। आठ दशकों तक गुरुजी के आदर्शों को इस तरह विकार-रहित रूप से संभाले रखने के लिए मुझे उन पर कितना गर्व है!”
— एन. एस., भारत

“मैं दया माताजी से कभी मिला नहीं, पर उनके निधन में मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मैं उन्हें सदा से जानता हूँ। मेरे लिए वे शक्ति और सुरक्षा के पर्वत की तरह थीं। ‘वे हैं’ — बस इतना जानने मात्र से मुझे सुकून मिल जाता था।… मानव देह में वे ज्ञान, अनुग्रह, और प्रेम — तीनों का प्रतीक थीं।”
— एच. एस., कैलिफ़ोर्निया

“अपने जीवन पर उनके प्रभाव का मैं पूरी तरह बखान नहीं कर सकताः मेरे लिए वे नारी के दिव्य रूप और प्रेम का आदर्श थीं।”
— ई. बी., कैलिफ़ोर्निया

“प्रिय श्री दया माँ।… इन वर्षों में आपके भेजे पत्रों के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। गुरुजी और आपने मेरा जीवन बदल दिया। आपकी सलाह, निःशर्त प्रेम, तथा अनवरत आशीर्वादों ने हमेशा मेरी मदद की है। ओह माँ, मैं आपसे हमेशा प्रेम करता हूँ। मैं अपना हृदय, मन, और अपनी आत्मा अब भी आपके आशीषों के लिए खोले रखूँगा। आपकी पावन पुस्तक Enter the Quiet Heart (Die Stimme des Herzens) मेरी प्रतिदिन की बाइबिल है।”
— आर. के., जर्मनी

“1970 के अन्त में, वार्षिक अधिवेशन के बाद, मुझे दया माताजी के एक सत्संग में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपने वक्तव्य के बाद ध्यान मन्दिर से निकलते समय उन्होंने हर भक्त का अभिवादन किया। उन्हें प्रणाम करते समय मैंने उनकी आँखों में देखा। मुझे लगा कि मैं अनन्तता की आँखों में निहार रहा हूँ, ईश्वर की आँखों में। उनमें अथाह गहराई थी। मैंने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया। उन्होंने मुस्कुराते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय में मेरा स्वागत किया, और मैं स्तब्ध अवस्था में ध्यान-मन्दिर से बाहर आया। यह अनुभव मैं कभी भूल नहीं सकता।…

“हममें से जो लोग गुरुजी से नहीं मिले, दया माताजी उनके लिए गुरुजी की शिक्षाओं का जीवन्त उदाहरण थीं।”
— जी.टी., कैलिफ़ोर्निया

“कई वर्ष पूर्व, भक्तों की एक टोली के साथ मुझे दया माताजी से मिलने अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय बुलाया गया। वहाँ पुस्तकालय में उन्होंने हमें एक अनौपचारिक सत्संग दिया। उनकी आँखों ने मुझे एकदम मन्त्रमुग्ध कर दिया। मैंने ‘सागर-सी गहरी आँखें’ मुहावरा सुना तो था पर इससे पहले मैंने कभी किसी की आँखों में इतनी गहराई, शक्ति, और सौन्दर्य नहीं देखा था। मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ कि मैं इस पृथ्वी पर उस समय जन्मा जब हमारी प्यारी माँ भी यहीं थीं।”
— जी. एच. कैलिफ़ोर्निया

“मेरे लिए तो यह वर्णन करने की शुरूआत कर पाना भी सम्भव नहीं है कि माँ ने मेरा जीवन किस तरह बदल डाला। पिछले लगभग पन्द्रह वर्षों से उनके व्याख्यानों को सुनना या उनके शब्दों को पढ़ना मेरी दिनचर्या का अंग बन चुका है, और वास्तव में इन्होंने मेरे जीवन को परिवर्तित कर दिया है। उन्होंने हमेशा मुझे उत्साह और आध्यात्मिक दृढता तथा ईश्वर की ललक से आवेशित रखा है। पर इससे भी अधिक, उन्होंने मुझे उस प्रियतम प्रभु के साथ एक बड़ी ही आत्मीय, मधुर, प्रेममय, विश्वासपूर्ण, और उन्मादक मित्रता स्थापित करने में मदद की है।

“दया माँ ने मेरी ध्यान की अवधियों को ईश्वर के साथ सच्चे सम्पर्क में बदलने में सहायता की है। और उन्होंने मेरे कार्यों को ईश्वर की उपस्थिति में किए गए प्रेमपूर्ण कृत्यों में बदलने में सहायता की है। माँ ने मुझे दिखाया कि शिष्य होने का क्या अर्थ है, एक मित्र होने का क्या अर्थ है, एक विनम्र सेवक होने का क्या अर्थ है, एक नेता होने का क्या अर्थ है, और सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कि एक प्रेमी होने का क्या अर्थ है; एक ऐसा प्रेमी जो ईश्वर-भक्ति की मदिरा से मदोन्मत्त है।”
— एम. पी., नेवाडा

“उनकी उपस्थिति, उनकी सफलतायें, उनका उदाहरण, कई पीढ़ियों तक सितारे की तरह जगमाते रहेंगे। भारत का एक सर्वोत्तम अंश, दया माता के रूप में लॉस एन्जिलिस में रहता था।”
— अनाम पत्र, मैरीलैंड

“उनकी जीवन-गाथा ने मुझसे बहुत कुछ कह डाला। गुरु के प्रति उनकी भक्ति त्रुटिहीन थी और उनका सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप का नेतृत्व अद्भुत था। उन्होंने मुझे निरन्तर प्रेरणा दी है कि ईश्वर से गहन सम्पर्क बनाये रखने का प्रयास करते हुए आध्यात्मिक जीवन कैसे जीया जाए। शब्दों में यह बयान कर पाना सम्भव नहीं है कि मेरे पूरे जीवन पर उनका कितना गहरा प्रभाव पड़ा है, और पड़ता रहेगा।”
— एस. एल., टैक्सस

“आप उन्हें देखते ही बिना किसी संदेह के यह जान जाते थे कि श्री दया माता प्रकाश, प्रेम, और अच्छाई की एक मूर्ति थीं। हमारे परिवार के लिए श्री दया माता सदा प्रेरणा का अक्षय स्रोत रही हैं तथा आगे भी रहेंगी; तथा इस बात का आदर्श उदाहरण भी कि परमहंस योगानन्दजी के सच्चे शिष्य को कैसा होना चाहिए।”
— अनाम पत्र, स्पेन

“मैं जब कभी भी माँ के बारे में सोचता हूँ, सदैव प्रेम का अनुभव करता हूँ।”
— पी. डी., कैलीफोर्निया

“यह विशाल प्रशान्त महासागर अब मुझे माँ के चुम्बकीय व्यक्तित्व से दूर नहीं रखता। हमारी प्रिय अध्यक्षा, प्रमुख, शिक्षक, मित्र, अपने गुरु के पास उस प्रकाशमय संसार में चली गयी हैं। परमानन्द की लहरें हमारे हृदयों को उनके मधुर हर्ष से धोती हैं। यद्यपि हम किनारे पर छूट गए हैं पर हम अकेले नहीं हैं और न ही हमें शोक करना चाहिए कि वे अब हमारे पास नहीं गुरुदेव के पास हैं। गुरु और शिष्य की प्रेम-तंरगें संसार भर में पहुँचती हैं। करुणामयी माँ! आपके अनुकम्पाशील जीवन के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद!”
— एच. डब्ल्यू., ऑस्ट्रेलिया

“चाहे पृथ्वी पर हों या स्वर्ग में — श्री दया माता मेरे पथ को आलोकित करती हैं।”
— एन. आर., कॅनेडा

शेयर करें