God Talks With Arjuna के हिन्दी अनुवाद का लोकार्पण
भारत के माननीय राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविन्द, नवंबर 15, 2017 को, परमहंस योगानन्द कृत ‘God Talks With Arjuna: The Bhagavad Gita’ के हिन्दी अनुवाद के लोकार्पण के अवसर पर, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के राँची आश्रम पधारे। उनके साथ झारखण्ड की राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मु, मुख़्यमंत्री झारखण्ड श्री रघुबर दास (दाएँ में फोटो देखें) और अन्य गणमान्य लोग थे। स्वामी चिदानन्दजी, अध्यक्ष योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/ सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप ने वाईएसएस और एसआरएफ़ के संन्यासियों के स्वागत दल की अगुआई कर माननीय अतिथियों का आतिथ्य किया। साथ ही, वाईएसएस के लगभग 3000 सदस्य एवं मित्र भी इस कार्यक्रम लिए उपस्थित थे, जो सोसाइटी के शताब्दी समारोह (1917-2017) पर 2017 के शरद संगम के अवसर पर हुआ।
उत्सव की शुरुआत राष्ट्रगान गाने से हुई, जिसके बाद स्वामी चिदानन्द गिरि तथा वाईएसएस के निदेशक बोर्ड के सदस्यों ने पुष्प गुच्छ एवं शॉल भेंट कर माननीय अतिथियों का औपचारिक रूप से स्वागत किया। तत्पश्चात श्री कोविन्द, श्रीमती मुर्मु और श्री दास ने अनुष्ठानिक दीप प्रज्ज्वलन में भाग लिया। श्रोताओं की करतल ध्वनि के बीच झारखण्ड की राज्यपाल ने “God Talks With Arjuna” के हिन्दी संस्करण का आधिकारिक रूप से लोकार्पण किया। तत्पश्चात उन्होंने प्रथम प्रति भारत के राष्ट्रपति को भेंट की। स्वामी स्मरणानन्द, महासचिव, वाईएसएस ने परमहंस योगानन्द कृत भगवद्गीता की टीका का महत्व बताते हुए, उनके द्वारा योग के इस पावन ग्रन्थ को समझ पाने के एकमात्र योगदान पर ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने कहा : “भगवद्गीता शताब्दियों से विभिन्न धर्मों के अनेकों संतों का प्रिय ग्रन्थ रहा है। गीता की अनेकों टीकाएँ उपलब्ध हैं। तो क्या फिर एक और टीका की आवश्यकता है? हाँ। क्योंकि “God Talks With Arjuna” एक अन्य साधारण व्याख्या नहीं है। यह गीता का अद्वितीय नया रहस्योदघाटन है, विशेषकर योग विज्ञान के सम्बन्ध में।”
स्वामी चिदानन्द गिरि का सम्बोधन
तत्पश्चात स्वामी चिदानन्दजी ने सभा को सम्बोधित किया, संक्षिप्त में बताया कि “God Talks With Arjuna” किस तरह अस्तित्त्व में आई तथा परमहंसजी द्वारा भारत की आध्यात्मिकता के मर्म को पहले पश्चिम में लाने और फिर भारत सहित समूचे विश्व में ले जाने के मिशन के बारे में बताया।
उन्होंने अपनी वार्ता इन शब्दों पर समाप्त की, “माननीय राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, हम यह स्वीकारें और हर्ष मनाएँ कि आप आज परमहंसजी की विश्व प्रसिद्ध गीता की टीका के सुन्दर नवीन संस्मरण का ही लोकार्पण नहीं कर रहे हैं; आप अत्यंत विशिष्ट रूप से विश्व को भारत के अद्वितीय व शक्तिशाली उपहार की स्वीकृत और पुष्टि कर रहे हैं। सच में, सभ्यता एक सार्वभौमिक वैज्ञानिक आध्यात्मिकता के अभाव में जीवित नहीं रह सकती, जैसा कि भारत ने संजोकर और बचाकर रखी है, और अब अत्यंत उदारता से राष्ट्रों के विश्व कुटुंब के साथ साझा कर रहा है। यह इतना महत्वपूर्ण है, उस आध्यात्मिक चेतना के लिए, जो जोड़ती है, तोड़ती नहीं — एक आध्यात्मिकता जो प्रत्येक आत्मा की असीमित दिव्य क्षमता को जागृत कर देती है, प्रत्येक मानवीय आत्मा में उसे उदघाटित करती है, आध्यात्मिक रूप से कहें, तो सभी आत्माएँ, एक ईश्वर की संतति होने के नाते, भाई, बहनें हैं — सच्चे उन्नत विकास के लिए मुख्य आवश्यकता है, वास्तव में विश्व इतिहास के इस नाज़ुक मोड़ पर पर मानवता के बचे रहने के लिए।
“इसलिए अंत में मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस महान् ग्रन्थ का आलोक, श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा इस पवित्र भगवद्गीता का दिव्य प्रकटीकरण हम सबका मार्ग प्रशस्त करे, समूचे भारत का, समूचे विश्व का। ईश्वर आप सब पर कृपा करें। ओम शान्ति! शान्ति! शान्ति!”
भारत के राष्ट्रपति का सम्बोधन
आगे, राष्ट्रपति कोविन्द ने श्रोताओं को हिन्दी में संबोधित किया। उन्होंने यह बताते हुए शुरू किया कि आश्रम के प्रांगण में घूमते हुए वह कितने प्रभावित हुए और उन्होंने नैसर्गिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता के अनुपम तालमेल का अनुभव किया। भारत तथा विश्व के विभिन्न भागों से आए श्रद्धालुओं की उपस्थिति का संज्ञान लेते हुए उन्होंने अंग्रेज़ी में उनके ध्यान मार्ग की प्रशंसा की और उन सभी का अभिवादन किया।
श्री कोविन्द ने आगे कहा, “मानवजाति की सतत सेवा के सौ वर्ष पूरा करने पर मैं योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया, को बधाई देता हूँ और मैं परमहंस योगानन्द के विचारों और आदर्शों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का अभिनन्दन करता हूँ।” उन्होंने आगे कहा, “परमहंस योगानन्द का सन्देश आध्यात्मिकता का सन्देश है। धर्म की सीमाओं से परे जाकर, उनका सन्देश सभी धर्मों का आदर करने का है : उनका दृष्टिकोण विश्व बंधुत्व का है।”
राष्ट्रपति कोविन्द ने परमहंसजी की गीता की टीका हिन्दी में निकालने के लिए वाईएसएस की प्रशंसा करते हुए कहा, “इस पुस्तक में निहित ज्ञानमयी शिक्षाऐं जो कि दैनिक जीवन में अति सहायक है, इसके हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन द्वारा, अब एक बहुत बड़े पाठकवर्ग के लिए उपलब्ध होंगी।” उन्होंने अपने इस विश्वास की भी पुष्टि की, कि “प्रत्येक जो भी गीता की शिक्षाओं को अपने व्यवहार में अपनाता है वह स्थिर, शांतचित्त हो, आपातकाल के बीच भी, आगे बढ़ता रहेगा।” उन्होने आशा जताई कि “परमहंस योगानन्द कृत गीता टीका के माध्यम से जो कि अब हिन्दी में उपलब्ध है, लाखों लोग स्वयं को बेहतर जान पाएँगे और अपने जीवन को बेहतर बनाने वाली राह को पहचान पाएँगे।”
आज के विश्व पर, परमहंस योगानन्द के आध्यात्मिक प्रभाव की सराहना में राष्ट्रपति ने कहा, “परमहंस योगानन्द ने आज की युवा पीढ़ी को भी गहन रूप से प्रभावित किया है, जो कि भौतिकता और प्रतियोगिता से घिरी हुई है। उग्र संघर्ष के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समृद्धि और सफलता प्राप्त करने का श्रेय कई युवा, [परमहंस योगानन्द कृत] ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी को देते हैं। यह अत्यंत सुप्रसिद्ध पुस्तक है और मैं सोचता हूँ कि आप में से अधिकाँश ने इसे पढ़ा है; मुझे भी यह अवसर मिला। यह पुस्तक सभी के जीवन में अनुसरण हेतु सही राह प्रशस्त करती है।”
प्रस्थान से पूर्व, विचार के पल
कार्यक्रम के पश्चात, राष्ट्रपति कोविन्द ने परमहंसजी के निवास स्थान जो अब पुण्य स्थान है, देखने की इच्छा व्यक्त की। स्वामी चिदानन्द, उनके तथा अन्य गणमान्य अतिथियों के साथ उस पुण्य स्थान पर गए जहाँ उन्होंने मौन में कुछ पल बिताए। अपने अनुभव से स्पष्ट रूप से द्रवित राष्ट्रपति कोविन्द ने आश्रम भ्रमण की सराहना करते हुए प्रस्थान किया।
राष्ट्रपति के भाषण के अंश भारतीय दूरदर्शन पर प्रसारित किए गए तथा रिपोर्ट्स अगले दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुईं। उनके भाषण का वीडिओ (हिन्दी में) उनके आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर पोस्ट किया गया (नीचे देखें)