प्रिय साथियो और मित्रों,
हमारी प्रिय अध्यक्ष और संघमाता श्री दया माताजी ने इस संसार से प्रस्थान से पहले हमारे आध्यात्मिक परिवार और मित्रों को प्रत्येक नव वर्ष पर भेजा जाने वाले संदेश तैयार किया था। उनकी सहायता और आशीर्वाद आज भी हमारे साथ है, और हमने सोचा कि आप और उन सभी आत्माओं को जो ईश्वर के साथ अपना आत्मिक सम्बंध स्थापित करने में प्रयासरत हैं इस संदेश को उनकी आपके प्रति गहरी चिंता का एक स्मृति संकेत समझेंगे। उनके शब्दों के माध्यम से आप उनकी उपस्थिति, उनका उत्साहवर्धन और उनके दिव्य प्रेम से स्वयं को उन्नत होता अनुभव करेंगे।
श्री श्री मृणालिनी माता
योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की ओर से
नव वर्ष 2011
हम सभी गुरुदेव परमहंस योगानन्दजी के आश्रमों में आपके लिए प्रार्थना करते हैं और इस नव वर्ष में प्रवेश करते हुए अपनी आत्मिक मित्रता आपको भेजते हैं। हम आपको और गुरु जी के आध्यात्मिक परिवार और विश्व भर में फैले हुए मित्रों को, क्रिसमस पर भेजे गए प्रेम भरे संदेशों और यादगारों के लिए, और पिछले कुछ महीनों में भावनात्मक जुड़ाव के लिए धन्यवाद करते हैं। अपनी एकजुट प्रार्थनाओं और प्रयासों के द्वारा हम आदर्शों को अपने जीवन में बनाए रखने का प्रयास करते हैं, एक दूसरे को शक्ति प्रदान करते हैं, आशा की किरण जगाते हैं, ईश्वर में छिपी भलाई और प्रत्येक आत्मा में, दैवी क्षमता को बढ़ाते हैं। इस निरन्तर परिवर्तनशील संसार में निर्भयता पूर्वक प्रतिदिन आने वाली चुनौतियों का सामना करते हुए आइए अपनी चेतना को ईश्वर के अपरिवर्तनशील प्रेम में बांध दें जिससे हम उसकी उपस्थिति को अनुभव करें और प्रतिबिंबित करें। ऐसा उन्मुक्त भाव तब आता है जब हम नई शुरुआत के बारे में सोचते हैं, सीमितताओं को पीछे छोड़ते हुए जिन्होंने हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचाने की योग्यता को या खुशी को ग्रहण लगा रखा है। हमारे पिछले अनुभव या वर्तमान परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, हम इसी क्षण से एक सेवामय, संतोषपूर्ण जीवन व्यतीत करने का चयन कर सकते हैं; हम चरित्र का विकास करने वाले उन गुणों का संवर्द्धन कर सकते हैं जो ईश्वर के साथ समस्वरता लाते हैं तथा मूल्यवान् उपलब्धियों को भी सम्भव बनाते हैं। नववर्ष में आने वाले नूतन सुअवसरों के माध्यम से ईश्वर हमसे आग्रह करते हैं कि हम अपनी आत्मा के अन्तर्निहित साहस एवं उसकी अदम्यता को पुनर्जाग्रत करें कि हम अपने जीवन की बागडोर सम्भालें और वह सब कुछ बनें जो हम बनना चाहते हैं। इसमें पहला महत्त्वपूर्ण कदम है कि हम अपनी चेतना को नकारात्मकता से हटाकर सकारात्मकता की ओर केन्द्रित करें — बाधाओं से हटाकर लक्ष्य की ओर, तथा परिस्थितियों के कारण अकर्मण्य हो जाने की मनःस्थिति से इस बोध की ओर कि हम अपनी नियति खुद निर्धारित कर सकते हैं। आप जो भी बनना चाहते हैं वह आप के अन्दर है, और आप उन सभी गुणों को सकारात्मक सोच एवं ठोस कार्यों द्वारा बाहर ला सकते हैं। आप जिन विशेष गुणों को प्रकट करना चाहते हैं उनका निरन्तर प्रतिज्ञापन और अभ्यास करते रहें, जैसे दृढ़तर इच्छा-शक्ति, आत्मविश्वास, अथवा धैर्य। इस प्रकार आप सफलता के बीजों को अपनी चेतना में गहनतम स्तरों पर रोपित कर सकेंगे। यदि पुरानी आदतें बार-बार सामने आयें तो उनसे हार मानना अस्वीकार कर दीजिये। याद रखिये कि आप जिस दिन और जिस क्षण एक पुनर्नवीकृत संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे, उसी दिन और उसी क्षण से आप अपने जीवन को नये सिरे से आरम्भ कर सकेंगे।
इस संसार में हम जो कुछ भी खोजते हैं उसके पीछे हमारी यह सबसे बड़ी आवश्यकता निहित होती है — उस परमात्मा के साथ अपने सम्बन्ध को पुनर्स्थापित करना जो हमारे अस्तित्व का परम स्रोत है। जब आप अहंमन्यता एवं संसार-सम्बन्धित समस्त विचारों से अलग हो कर ईश्वर से सम्पर्क साधते हैं तो आपका हृदय कितनी मृदु शान्ति से सराबोर हो जाता है — एक ऐसे माधुर्य और सुख के अहसास से जो किसी दूसरी चीज़ से नहीं मिल सकता। आप ईश्वर-प्रेम के दायरे में सुरक्षित अनुभव करते हैं और जानते हैं कि ईश्वर की सहायता से आप कुछ भी कर सकते हैं। जैसा कि गुरुजी ने कहा है, “जब भी आपको अपनी क्षमता में परिसीमन महसूस हों तो अपनी आँखें बन्द करें और स्वयं से कहें, ‘मैं अनन्त हूँ,’ और आप देखेंगे कि आप के अन्दर कितनी शक्ति है।” सतत रूप से खुद को बेहतर बनाने के लिये उस शक्ति का प्रयोग करने से आप अपने सम्पर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों पर एक उन्नयनकारी प्रभाव डाल सकते हैं। मैं प्रार्थना करती हूँ कि आप अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और संकल्पों को ईश्वर के चरणों में अर्पित करते हुए उनकी सहायक उपस्थिति एवं मृदुल संरक्षण के प्रति सजग बनें जिसके द्वारा ईश्वर आपकी आत्मा के उन्मीलन में मार्गदर्शन दे रहे हैं और आपको अपने समीप ला रहे हैं।
आपको तथा आपके प्रियजनों को क्रिसमस पर अतिविशेष आशीष,
श्री दया माता