योगदा सत्संग पत्रिका, अंक अक्टूबर-दिसंबर 2009 के लेख में से उद्धृत
आदि काल से भारत के ऋषियों ने समूचे मानव अस्तित्त्व का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया है और लोगों को यह परामर्श दिया है कि मानव जीवन के सर्वोच्च सामर्थ्य को किस प्रकार पहचाना जाए। मनोविज्ञान आपको सिखाता है कि आप क्या हैं; नीति का नियम (Ethics) आपको बताता है कि आपको कैसा बनना चाहिए। संत-महानुभावों ने इस पर बल दिया है कि ये दोनों ही बातें उस आध्यात्मिक प्रशिक्षण का अंग हैं जो शरीर, मन एवं आत्मा का आध्यात्मिक विकास करता है।
प्रत्येक दिन आप अपने चेहरे और शरीर को देखने के लिए शीशा देखते हैं, क्योंकि आप दूसरों के समक्ष अच्छे-से-अच्छा दिखना चाहते हैं। क्या प्रतिदिन अन्तर्निरीक्षण के, आत्म-विश्लेषण के आन्तरिक दर्पण में देखना इससे अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है, ताकि इस बाह्य छवि के पीछे विद्यमान आकृति त्रुटि रहित बनी रह सके? बाह्य आकर्षण अन्तर में स्थित आत्मा की दिव्यता से उत्पन्न होता है। और जिस प्रकार चेहरे पर एक छोटा-सा मुंहासा या चोट का निशान चेहरे के सौन्दर्य को विकृत कर देता है, उसी प्रकार क्रोध, भय, घृणा, ईर्ष्या, मर्त्य अस्तित्व की अनिश्चितताओं द्वारा होने वाली चिन्ता के मानसिक विकार, आत्मा के प्रतिबिम्ब को विकृत कर देते हैं। यदि आप प्रतिदिन स्वयं को इन विकृतियों से मुक्त करने का प्रयत्न करें, तो आपकी आत्मा के सौन्दर्य की कान्ति आपके बाह्य स्वरूप में प्रकट होने लगेगी।
विश्लेषण द्वारा हम यह पाते हैं कि मनुष्य की समस्याएँ तीन प्रकार की होती हैं : एक जो शरीर को कष्ट पहुँचाती हैं, दूसरी जो मन को प्रभावित करती हैं, और तीसरी जो आत्मा को माया में घेरे रखती हैं। बीमारी, वृद्धावस्था, तथा मृत्यु शरीर की परेशानियाँ हैं। दुःख, भय, क्रोध, अतृप्त लालसाओं, असंतोष, घृणा, तथा किसी भी स्नायुगत विक्षोभ अथवा भावनात्मक आसक्ति के मानसिक नासूर द्वारा मानसिक व्याधियाँ अतिक्रमण करती हैं। और आत्मा की अविद्या रूपी रोग, जो कि इन सबसे घातक है, वह ही अन्तर्निहित घटक है जो अन्य सभी समस्याओं की उत्पत्ति का कारण बनती है।
एकमात्र सच्ची मुक्ति आत्मा की चेतना में ही निहित है। खुद का विश्लेषण करें और यह ज्ञात करें कि आपकी आत्मा की चेतना किस हद तक अविद्या या माया की जड़ों द्वारा जकड़ी हुई है। सच्ची मुक्ति केवल तभी सम्भव है जब इन जड़ों को काट दिया जाता है।
चिन्तन करें और अपने जीवन का ढाँचा तैयार करें, और देखिए आप कैसे परिवर्तित होंगे। निरन्तर अपने आप को सुधारने का प्रयास करें। अच्छी संगति खोजें, ऐसी संगति जो आपको ईश्वर का स्मरण कराए और जीवन में उत्तम बातों का स्मरण कराए। प्रतिदिन इस बात के प्रति सचेत रहें कि आप अपनी बुरी आदतों को कैसे बदलने वाले हैं; आप अपने दिन को किस तरह व्यवस्थित करेंगे; आप अपनी शांति को कैसे बनाए रखेंगे। और समय-समय पर आन्तरिक रूप से पूछें, “प्रभु, क्या मैं समय नष्ट कर रहा हूँ? प्रतिदिन मुझे किस तरह थोड़ा-सा खाली समय मिले कि मैं केवल आपके सान्निध्य में रहूँ?” मैं हर समय ऐसा कहता हूँ। और वे प्रत्युत्तर देते हैं, “तुम मेरे ही साथ हो, क्योंकि तुम मेरा चिन्तन कर रहे हो।”
ध्यान में और ईश्वर से गहन प्रार्थना में अपनी सुबह की शुरुआत करें; और जब आप ध्यान कर चुके हों तो ईश्वर से अपने जीवन और अपने सभी सच्चे प्रयासों का मार्गदर्शन करने के लिए कहें; “हे प्रभु! मैं विवेक का उपयोग करूँगा, मैं संकल्प करूँगा, मैं कर्म करूँगा; परन्तु मेरे विवेक, संकल्प और कर्म को उस सद्कर्म की ओर निर्देशित करें जो मुझे अपने सभी कार्यों में करना चाहिए।” उस दिन हर तरह से बेहतर बनने का संकल्प करें। यदि आप शांति के साथ सुबह की शुरुआत करें और हर पल ईश्वर का चिन्तन करते हुए दिन भर अपनी शांति को बनाए रखने की चेष्टा करते रहें, या किसी ऐसी अच्छी आदत को कार्यान्वित करने का प्रयास करते रहें जिसे आप अपनाना चाहते हैं, तो रात आने पर आप यह जानते हुए सो सकते हैं कि आपने अपने दिन का भली प्रकार उपयोग किया है। आप जान जाएंगे कि आप प्रगति कर रहे हैं।