प्रिय आत्मन्,
सन् 2011 से अब तक योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की अध्यक्ष एवं संघमाता रहीं, श्री मृणालिनी माताजी 3 अगस्त, 2017 को शान्तिपूर्वक ब्रह्मलीन हुई। हम हमेशा उनकी कमी महसूस करेंगे। फिर भी हम नहीं चाहेंगे कि हमारा दुःख उनके उस आनन्द एवं स्वतंत्रता को थोड़ा भी भंग करे, जो वे अभी उस स्वर्गीय लोक में अनुभव कर रही हैं, जहाँ गुरुजी ने अपार आनन्द के साथ उनका स्वागत किया है तथा संपूर्ण निष्ठा के साथ उनके द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए उन पर अपना दिव्य प्रेम एवं आशीर्वाद बरसा रहे हैं। मृणालिनी माता गुरुजी की शिक्षाओं तथा उनके मार्गदर्शन का निर्मल माध्यम थीं। गुरुजी ने उन्हें इसलिए चुना था क्योंकि अपने पिछले जन्मों में गुरुजी की शिष्या के रूप में उन्होंने उच्च आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त की थी और क्योंकि गुरुजी जानते थे कि उनमें वह विवेक और विनम्रता है कि वे स्वयं को महत्त्व न देकर, केवल ईश्वर एवं गुरु को ही प्रसन्न करने का प्रयास करेंगी।
जब हमारे गुरुदेव जैसी महान् आत्माएं किसी विश्वव्यापी कार्य के लिए पृथ्वी पर अवतरित होती हैं, तो ईश्वर प्रायः उनके पिछले जन्मों के मुख्य शिष्यों को भी उनके कार्य में सहायता करने के लिए उनके पास भेजते हैं। मृणालिनी माता निश्चित रूप से एक ऐसी ही शिष्या थीं। चौदह वर्ष की आयु में जब मृणालिनी माताजी गुरुजी से पहली बार मिलीं, उसी समय गुरुजी ने पहचान लिया था कि ईश्वर एवं महान् गुरुजनों द्वारा उन्हें सौंपे गये पवित्र क्रियायोग विज्ञान के प्रसार में वे एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
इस शान्त, शर्मीली लड़की की निर्मलता तथा ज्ञान की गहराई को देखकर गुरुजी समझ गए कि इसमें न केवल उनके द्वारा सिखाए गए दिव्य रूप से प्रकट सत्यों के मर्म तक जाने की क्षमता है बल्कि उन सत्यों में निहित उनके ज्ञान की शक्ति को निर्विकार रूप से मुद्रित रुप में प्रस्तुत करने का सामर्थ्य भी है। उन्होंने यह भी पहचाना कि मृणालिनी माता में उनके आदर्शों एवं शिक्षाओं के प्रति पूर्ण रूप से एकनिष्ठ बने रहने की क्षमता है — एक ऐसी शिष्या जिसे वे अपने प्रेरणा-रत्नों के परिमार्जन का उत्तरदायित्व सौंप सकते हैं, यह जानते हुए कि वह कभी भी उनके अर्थ से नहीं भटकेंगी बल्कि इसके मूल तत्त्व को ग्रहण करेंगी। गुरुजी ने तारा माता के बाद उन्हें अपनी शिक्षाओं को प्रकाशन हेतु तैयार करने के बृहद कार्य के लिए बड़े जतन से व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षित किया था,और इस कार्य में मृणालिनी माताजी ने अपने हृदय, मन, एवं आत्मा को समर्पित कर दिया। गुरुजी के साथ उनकी विशुद्ध समस्वरता के लिए, एवं दशकों तक किए गए उनके स्वार्थरहित प्रयासों के लिए, जिसके कारण हमें गुरुजी के दिव्य ज्ञान की ऐसी अद्वितीय निधि प्राप्त हुई, गुरुदेव की शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले हम सभी शिष्य तथा भक्तों की भावी पीढ़ियाँ अनंतकाल तक उनकी ऋणी रहेंगी।
अपनी चेतना को गुरुदेव की विराट चेतना में स्थित रखते हुए, उनके आश्रमों में अपने अनेक वर्षों के दौरान मृणालिनी माताजी ने विविध भूमिकाओं का निर्वाह किया। गुरुजी की शिक्षाओं के संपादन के अपने आजीवन उत्तरदायित्व के अतिरिक्त, पश्चिम तथा भारत में गुरुदेव के कार्य के विस्तार हेतु श्री दया माता के साथ उपाध्यक्ष के रूप में अनेक वर्षों तक उन्होंने अपनी सेवाएं प्रदान कीं। उनके हृदय में गुरुजी की मातृभूमि के लिए एक विशेष स्थान था, और वहाँ उनके कार्य को फलते-फूलते देख कर वे अत्यधिक प्रसन्न होती थीं। दया माता के ब्रह्मलीन होने के बाद जब वे वाइएसएस/एसआरएफ़ की अध्यक्ष बनीं, तो उन्होंने गुरुजी की संस्था का उसी भाव के साथ मार्गदर्शन किया जिसे दया माताजी ने इन शब्दों में व्यक्त किया था, “जो मैं चाहती हूँ वह नहीं, बल्कि गुरुजी जो चाहते वह पूर्ण हो।” इन दोनों अध्यक्षों के जीवन उदाहरण इस अटल सत्य की पुष्टि करते हैं कि गुरुजी ही इस पवित्र कार्य के सर्वेसर्वा हैं, और हमेशा रहेंगे।
जिन लोगों के जीवन हमें प्रेरित करते हैं, तथा आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने में हमारी सहायता करते हैं, वे हमारी आत्माओं पर एक चिरस्थाई निशान छोड़ जाते हैं। ईश्वर एवं गुरु के प्रति उनकी अविचल भक्ति, गुरुजी की शिक्षाओं पर किए गए उनके कार्य, और गुरुजी के आध्यात्मिक परिवार के प्रति उनकी गहन देखभाल के कारण, हमारी प्रिय मृणालिनी माताजी सदा हमारे हृदयों में निवास करेंगी। एक साथ मिलकर उन्हें अपना प्रेम, कृतज्ञता, और प्रार्थनायें भेजते हुए हम इस बात के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं कि वे हमारे विचारों को ग्रहण कर रही हैं, और ईश्वर के आलोक एवं आनन्द में हम उनसे पुन मिलेंगे। उनके प्रति हमारी स्थायी श्रद्धांजलि यह हो कि जब तक गुरुजी की शिक्षाओं में निहित सत्य हमारे जीवन में एक जीवन्त, रूपान्तरकारी शक्ति न बन जायें, हम पूर्ण उत्साह एवं दृढ़ता के साथ उन्हें अपने जीवन में उतारने के लिए प्रयास करते रहें। गुरुजी के चरणों में अर्पित किया गया वह उपहार, हमारी कृतज्ञता की वह अभिव्यक्ति होगी जो मृणालिनी माता की आत्मा को सर्वाधिक प्रिय होगी।
दिव्य मैत्री में आपका,
स्वामी अचलानन्द, उपाध्यक्ष
वाईएसएस/एसआरएफ़ निदेशक मण्डल की ओर से