मानवीय प्रेम को दिव्य प्रेम में रूपांतरित करना — परमहंस योगानन्द

3 अगस्त, 2024

परमहंस योगानन्दजी के प्रवचनों एवं लेखन से :

ईश्वर मानव हृदय के माध्यम से लुका-छिपी खेल रहे हैं, ताकि अंततः आप समझ सकें कि यह उनका ही प्रेम है जिसे आप अपने विभिन्न प्रकार के मानवीय प्रेम में खोज रहे हैं। यदि आप अपने मानवीय प्रेम से ईश्वर को हटा देते हैं, तो प्रेम फीका पड़ जाता है। लेकिन ईश्वर को अपने दैनिक जीवन में लाने से, साधारण मानवीय प्रेम ईश्वरीय प्रेम में बदल जाता है, जो आपके भीतर ईश्वर की छवि से प्रकट होता है।

सभी मनुष्यों और अन्य प्राणियों को व्यक्तिगत रूप से जानना और उनसे प्रेम करना आवश्यक नहीं है। आपको बस इतना करना है कि आप उन सभी जीवित प्राणियों की मैत्रीपूर्ण सेवा करने के लिए सदा तैयार रहें जिनसे आप मिलते हैं। इस दृष्टिकोण के लिए निरंतर मानसिक प्रयास और तैयारी की आवश्यकता होती है; अन्य शब्दों में, निःस्वार्थता की।

यदि हम रिश्तों के आध्यात्मिक उद्देश्य को समझ लें—दूसरों के लिए प्रेम के नित्य-बढ़ते दायरे में आत्म-प्रेम का विस्तार करना सिखाना—तो मित्रता, दाम्पत्य प्रेम, माता-पिता के प्रेम, तथा सभी साथियों और सभी सजीव प्राणियों के प्रेम के द्वारों के माध्यम से हम सर्वशक्तिमान, परम-, या दिव्य प्रेम के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।

कोई भी प्रेम तब तक सच्चा प्रेम नहीं है जब तक वह ईश्वर के प्रेम के साथ एकरूप नहीं है; क्योंकि सभी सच्चे प्रेम केवल ईश्वर से ही आते हैं। मानवीय प्रेम को, दिव्य होने के लिए, गहरा और स्वार्थरहित होना चाहिए। हृदय के प्रेम को तब तक शुद्ध करें जब तक वह दिव्य न हो जाए।

अभ्यास हेतु एक प्रतिज्ञापन : जब मैं दूसरों के प्रति प्रेम एवं सद्भावना प्रसारित करता हूँ, मैं ईश्वरीय प्रेम को अपने पास आने के लिए सभी द्वार खोल लेता हूँ। दिव्य प्रेम वह चुम्बक है जो सभी अच्छाइयों को मेरी ओर खींचता है।

नीचे दिए गए लिंक पर आपको दिव्य प्रेम की प्रकृति, तथा इसे अपने जीवन में कैसे अनुभव और अभिव्यक्त किया जाए, इस विषय पर परमहंसजी से अधिक गहन प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलेगा।

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