जन्माष्टमी के निमित्त परमहंस योगानन्द के आश्रमों से एक संदेश — 2024

8 अगस्त, 2024

जो भक्त अनन्य भाव से मेरा ध्यान करते हैं, निरंतर भक्ति द्वारा सदैव मुझमें लीन रहते हैं, मैं उनकी कमियों को पूर्ण करता हूँ और उनकी उन्नति को स्थायी बना देता हूँ।

—ईश्वर अर्जुन संवाद: श्रीमद्भगवदगीता (IX:22)

प्रिय आत्मन्‌,

परमप्रिय भगवान्‌ श्रीकृष्ण के जन्मदिवस, जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर सप्रेम प्रणाम! जब हम दिव्य प्रेम के इस महान्‌ अवतार के इस उत्सव को अपनी भक्ति और आनन्दमय उल्लास के साथ मना रहें हैं, तो हम आशा करते हैं कि हमारे हृदय उनकी सर्वज्ञ आनन्दमय उपस्थिति के मतवाला कर देने वाले बोध के रोमांच से भर जाएँ।

हमारे पूज्य गुरुदेव परमहंस योगानन्द, श्रीकृष्ण से गहन वैयक्तिक संबंध साझा करते थे, जिनका जीवन और आत्मा को मुक्ति प्रदान करने वाला उनका कालातीत मार्गदर्शन, युगों-युगों के लिए एक जीवंत शास्त्र हैं। गुरुदेव, ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भागवदगीता द्वारा हमें प्रेरित करते हैं कि श्रीकृष्ण को दोनों, अर्थात् महान्‌ योगेश्वर—धर्म और क्रियायोग के शाश्वत विज्ञान को पुनः स्थापित करने वाले—और हमारी अपनी आत्मा के दिव्य मित्र के रूप में हृदय में संजोकर रखना चाहिए। गुरुजी समझाते हैं कि गीता में दिए गए गूढ़ सत्य इतने बृहद हैं कि वे ब्रह्माण्ड के संपूर्ण ज्ञान को अपने में समाहित करते हैं; फिर भी श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ लाखों भक्तों के लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शक हैं जिन्होंने उनके द्वारा ईश्वर की आंतरिक निकटता और प्रेममय संरक्षण का बोध किया है।

हमारा दैनिक जीवन, परम-आत्मा के धार्मिक सिद्धांतों—भलाई, दया, धर्मपराणयता, ईश्वर समस्वरता—और सांसारिक इच्छाओं, ध्यान की अनिच्छा और अदूरदर्शी स्वार्थीपन के अहंकार के मार्ग के बीच, अंतहीन चयन के अवसर प्रस्तुत करता है। अपने हृदय में श्रीकृष्ण के “दिव्य गीत (Song Celestial)” को सुनकर हम वर्तमान के तेज़ी से भागते संसार, जो हड़बड़ी में लिए गए स्वार्थी निर्णयों को बढ़ावा देता है, की अपेक्षा अधिक यथार्थ जीवन जी सकते हैं। ईश्वर उदारतापूर्वक हमारे दैनिक आंतरिक प्रयासों का हिसाब रखते हैं, हमारे प्रत्येक साहसिक निःस्वार्थ प्रयास को वे अपने विशाल हृदय के आशीर्वादों से सुदृढ़ करते हैं।

मुक्ति प्रदान करने वाली, विवेक युक्त आध्यात्मिक कार्य की संचयी शक्ति, ईश्वर के सहयोग से महान्‌ बन जाती है। कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन के समक्ष अपनी संपूर्ण सेना को या उसके सारथी के रूप में स्वयं उन्हें अकेले चुनने का प्रस्ताव रखा। आप यह जान लें कि, जैसा अर्जुन ने किया, ईश्वर—और उनके विशुद्ध माध्यम के रूप में प्रबुद्ध गुरु को चुनना—विजय का चयन करना है।

जन्माष्टमी और पूरे वर्ष भगवान्‌ कृष्ण की उपासना का सच्चा मार्ग है, आनंदपूर्वक उनके ज्ञान, भक्ति, उचित कार्य और ईश्वर से युक्त करने वाले ध्यान के राजयोग को अंगीकार करना। जब आप ऐसा करेंगे, तब आप एक विजेता की भाँति अपनी चेतना का उत्थान करेंगे, और संसार में दिव्य प्रेम, सुंदरता और आनंद के समन्वयकारी प्रभाव को प्रसारित करेंगे। आपमें से प्रत्येक के लिए मेरी यही प्रार्थना है।

जय श्रीकृष्ण! जय गुरु!

स्वामी चिदानन्द गिरी

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