प्रतिज्ञापन के सिद्धांत एवं निर्देश
हे सर्वव्यापी संरक्षक – जन्म और मृत्यु में, रोग, अकाल, महामारी या निर्धनता में मैं सदा दृढ़ता पूर्वक आपको पकड़े रखूँ। मुझे यह अनुभव करने में सहायता करें कि मैं अमर आत्मा हूँ जो बचपन, युवावस्था, वृद्धावस्था तथा सांसारिक उथल-पुथल के सभी परिवर्तनों से अछूती रहती है।
हे परमपिता, आपकी असीम और आरोग्यकारी शक्ति से मैं परिपूर्ण हूँ। मेरे अज्ञान के अंधकार को आपके प्रकाश से भर दो। जहाँ भी यह आरोग्यकारी प्रकाश उपस्थित है, वहीं परिपूर्णता है। इसीलिए मैं भी परिपूर्ण हूँ।
मैं अपना दिव्य जन्मसिद्ध अधिकार पाना चाहता हूँ, क्योंकि सहज ज्ञान के द्वारा मुझे यह बोध हो गया है कि मेरी आत्मा में बुद्धि और शक्ति पहले से ही निहित है।
परमप्रिय प्रभु, मैं जानता हूँ कि दुःख और सुख, मृत्यु और जीवन में भी आपके अदृश्य, सर्व सुरक्षित आवरण ने मुझे ढक रखा है।
ईश्वर मेरे अन्दर हैं, मेरे चारों ओर हैं, मेरी रक्षा कर रहे हैं; इसलिए मैं उन सभी भयों को दूर कर दूँगा जो मेरे अन्दर ईश्वर के मार्गदर्शक प्रकाश को आने से रोकते हैं।
मैं जानता हूँ कि ईश्वर की शक्ति असीमित है; और मैं उनके प्रतिबिम्ब स्वरूप हूँ। अतः मैं भी सभी बाधाओं को जीतने में सक्षम हूँ।
मैं ईश्वर की रचनात्मक शक्ति से परिपूर्ण हूँ। अनन्त प्रज्ञा मेरा मार्गदर्शन करेगी और प्रत्येक समस्या का समाधान करेगी। अनन्त प्रज्ञा मेरा मार्गदर्शन करेगी और प्रत्येक समस्या का समाधान करेगी।
मैं तनाव रहित होकर, सभी मानसिक दुखों को हटाकर, ईश्वर को मुझ में अपना शुद्ध प्रेम, शांति और बुद्धिमता अभिव्यक्त करने दूँगा।