वित्तमंत्री द्वारा परमहंस योगानन्दजी की स्मृति में सिक्के का लोकार्पण

6 नवम्बर, 2019

भारत सरकार ने परमहंस योगानन्दजी को श्रद्धांजलि देते हुए उनके 125वें जन्मदिवस (जिसे भारत में उनके सम्मान में वर्ष 2018 के प्रारम्भ से लेकर इस वर्ष तक मनाया गया) के उपलक्ष्य में रू125/- के एक विशेष स्मारकीय सिक्के का लोकार्पण किया। इस समारोह का आयोजन 29 अक्टूबर, 2019 को वित्तमंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में केन्द्रीय सचिवालय, नई दिल्ली में किया गया था। इसमें श्री अनुराग ठाकुर, वित्त और कार्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री तथा श्री अरुण गोयल, साँस्कृतिक सचिव एवं अन्य सरकारी अधिकारीगण उपस्थित रहे।

वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण (मध्य), राज्य मंत्री वित्त एवं कॉरपोरेट मामले, श्री अनुराग ठाकुर (दाहिने से दूसरे), साँस्कृतिक सचिव श्री अरुण गोयल (दाहिने), स्वामी विश्वानन्द (बाएं से दूसरे) तथा स्वामी स्मरणानन्द (बाएं) दिनांक 29 अक्टूबर, 2019 को केन्द्रीय सचिवालय, नई दिल्ली में परमहंस योगानन्दजी के सम्मान में सिक्के के लोकार्पण के समय।

अपने वक्तव्य में, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने परमहंस योगानन्दजी को एक महान् योगी के रूप में माना, जिन्होंने वैश्विक सद्भाव का सार्वभौमिक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि “भारत जगत् के इस महान् पुत्र के प्रति अत्याधिक गौरव अनुभव करता है, जिन्होंने हम सभी के मन तथा हृदय में सद्भाव की भावना को जागृत किया।”

स्वामी विश्वानन्द, सदस्य, निदेशक मण्डल, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप तथा स्वामी स्मरणानन्द, उपाध्यक्ष, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया ने यह नया सिक्का वित्तमंत्री सीतारमण से प्राप्त किया। भारत सरकार द्वारा परमहंस योगानन्दजी को भारत की महान् आध्यात्मिक विभूतियों में से एक के रूप में स्वीकार करने पर उन दोनों ने गहरी प्रशंसा अभिव्यक्त की। स्वामी विश्वानन्द ने एक लिखित संदेश भी पढ़ा जो कि वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरिजी द्वारा प्रेषित किया गया था। (इस संदेश का सम्पूर्ण विवरण नीचे देखें।) अनेक वाईएसएस भक्तजन तथा जनसाधारण व्यक्ति भी उपस्थित रहकर इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने।

स्मारकीय सिक्के का लोकार्पण, भारत सरकार द्वारा तीसरी बार औपचारिक रूप से परमहंस योगानन्दजी को श्रद्धांजलि दिए जाने की अभिव्यक्ति है। भारत सरकार ने दो बार स्मारकीय डाक टिकट जारी करके उनके भारत तथा विश्व के प्रति आध्यात्मिक योगदान को स्वीकारा है : 1977 में, श्री योगानन्द की महासमाधि की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर एवं 2017 में, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर।

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रू125/- के नए सिक्के के आगे व पीछे का भाग, जिसे परमहंस योगानन्दजी के 125वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में लोकार्पित किया गया। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 के प्रारम्भ में ही परमहंसजी के लाभकारी संदेश एवं शिक्षाओं के देश भर में प्रसारण हेतु विभिन्न परियोजनाओं के लिए बड़ा अनुदान स्वीकृत किया गया।। स्मारकीय सिक्के की योजना पिछले वर्ष ही बना ली गई थी, जो 29 अक्टूबर, 2019 को सिक्के के लोकार्पण के साथ फलीभूत हुई।

स्मारकीय सिक्के का बिक्री हेतु उपलब्ध होना

शीघ्र ही एक सीमित संख्या में स्मारकीय सिक्के बिक्री हेतु उपलब्ध होंगे। जैसे ही यह उपलब्ध होंगे, हम इस बारे में सूचना साझा करेंगे। 

स्वामी चिदानन्दजी के संदेश का पूर्ण विवरण, 29 अक्टूबर, 2019

Swami Chidananda's message on coin release

“परमहंसजी ने शाश्वत सत्य के आधार पर सभी लोगों के बीच बन्धुत्व की भावना फैलाने की चेष्टा की, कि हम एक ही ईश्वर की संतान हैं, और आपसी कल्याण के लिए हमें मित्रता, शांति और सद्भाव में रहने की आवश्यकता है।” — स्वामी चिदानन्द गिरि

श्री श्री परमहंस योगानन्द के 125वें जन्मोत्सव के शुभअवसर पर लोकार्पित किए गए स्मारकीय सिक्के के लिए आप सभी का सौहर्दपूर्ण अभिवादन। योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के भक्तों की ओर से तथा उन सभी की ओर से जो वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को स्वीकारते हैं, मैं माननीय वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण — एवं भारत सरकार — का सौभाग्यपूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने अपने एक महान् सन्त के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की, जो भारत की प्राचीन आध्यात्मिक धरोहर को सम्पूर्ण विश्व के समक्ष प्रगट करने के लिए दैवी रूप से नियत थे। परमहंसजी को पश्चिम में योग के जनक के रूप में जाना जाता है, जो वाईएसएस/एसआरएफ़ के गुरु तथा संस्थापक हैं, और उनकी गणना जगद्गुरुओं में की जाती है, जिनका संदेश सार्वभौमिक है, राष्ट्र एवं धर्म की सीमाओं से परे, जो भारत की परिव्यापक आत्मा एवं भावना को अभिव्यक्त करता है।

परमहंसजी ने शाश्वत सत्य के आधार पर सभी लोगों के बीच बन्धुत्व की भावना फैलाने की चेष्टा की, कि हम एक ही ईश्वर की संतान हैं, और आपसी कल्याण के लिए हमें मित्रता, शांति और सद्भाव में रहने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी आत्माओं तथा सभी ज़ीवों में एक ही ईश्वर के दर्शन की महत्ता पर भी बल दिया; साथ ही उन्होंने समस्त ईश्वरीय सृष्टि के प्रति आदर तथा श्रद्धाभाव का संदेश दिया। इसी आदर्श भावना के साथ उन्होंने अपने शिष्यों को संपूर्ण मानवजाति को स्वयं के विराट स्वरुप में सेवा करने को प्रोत्साहित किया, जिसमें अपनी चेतना और सेवा के क्षेत्र का विस्तार हो। वाईएसएस भक्तों की विभिन्न निःशुल्क गतिविधियाँ जैसे : अस्पताल, क्लिनिक एवं औषधालय, स्कूल एवं महाविद्यालय, प्राकृतिक आपदा पीड़ितों को राहत, ये सभी कार्य उसी आदर्श का मूर्त रूप हैं ।

हमारे गुरूदेव को मानवजाति की महानतम सेवा का जो ध्येय दिया गया था, वह था भारत के प्राचीन पवित्र क्रियायोग विज्ञान का सम्पूर्ण विश्व में प्रसार, जिसके श्रद्धापूर्वक अभ्यास से विश्वभर की आध्यात्मिक पिपासु आत्माओं को प्रत्यक्ष ईश्वर साक्षात्कार का अनुभव प्राप्त हो सकता है। उनकी शिक्षाएं सभी सच्चे साधकों के लिए, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, पंथ या राष्ट्र के हों, उपलब्ध हैं क्योंकि उनका दृढ़ विश्वास था कि हम सभी अलग-अलग धर्मों के हो सकते है, परन्तु सभी महान् धर्मों का सामान्य लक्ष्य हमें ईश्वर साक्षात्कार की ओर अग्रसर करना ही है। परमहंसजी ने पहले ही समझ लिया था कि ईश्वर की चेतना के साथ मिलन के माध्यम से, जो ध्यान में उनके साथ आंतरिक संवाद से आता है, ईश्वर की संतानें भी एक दूसरे के साथ अपने बंधन को अच्छे ढंग से समझेंगी, और इस तरह इस विश्व में अधिक सामंजस्य का युग लाएंगी।

माननीय वित्त मंत्री द्वारा इस स्मारकीय सिक्के को जारी करना सभी प्राणियों के हृदयों में दिव्य को साकार करने के लक्ष्य की दिशा के मील-पत्थर की सही समय पर मान्यता है।

ईश्वर उन सभी पर कृपा करे जो उनके वैश्विक परिवार में सद्भाव की भावना प्रसारित कर रहे हैं,

स्वामी चिदानन्द गिरि

अध्यक्ष, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप

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