दिव्य प्रेम पर परमहंस योगानन्दजी

27 फरवरी, 2024

परमहंस योगानन्दजी-दिव्य-प्रेम

यदि दिव्य प्रेम का लेशमात्र भी आप अनुभव कर पाएँ, तो आपका आनन्द इतना अधिक — इतना अभिभूत करने वाला — होगा कि आप उसे धारण नहीं कर पाएँगे।

सबसे महान् प्रेम को आप ध्यान में ईश्वर के साथ सम्पर्क करके ही अनुभव कर सकते हैं। आत्मा और परमात्मा के बीच का प्रेम परिपूर्ण प्रेम है, जिस प्रेम को आप सभी खोज रहें हैं। जब आप ध्यान करते हैं, तब प्रेम विकसित होता है। लाखों-करोड़ों रोमांच आपके हृदय से गुज़रते हैं। यदि आप गहराई से ध्यान करेंगे, तो एक ऐसा प्रेम आपकी चेतना में उतर आएगा जिसका वर्णन कोई मानवीय जिह्वा नहीं कर सकती; तब ईश्वर के दिव्य प्रेम को आप जान जाएँगे और वही शुद्ध प्रेम आप दूसरों को भी दे सकेंगे।

मुझे याद है जब मेरे गुरु [स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी] ने मुझसे पूछा था, ‘क्या तुम सभी को समान रूप से प्रेम करते हो?’ मैंने कहा, ‘हाँ।’ परन्तु उन्होंने कहा, ‘अभी नहीं, अभी नहीं।’ तब मेरा सबसे छोटा भाई राँची के मेरे विद्यालय में पढ़ने आया, और मेरी चेतना इस प्रकार थी कि वह मेरा है। तब मुझे यह बोध हुआ कि मेरे गुरु ने क्यों कहा था, ‘अभी नहीं।’ धीरे-धीरे वह चेतना समाप्त हो गई, और मुझे बोध हुआ कि मेरा भाई तो सम्पूर्ण मानवता का, जिसे मैं प्रेम करता था, बस एक अंग था।… एक दिन, फिर, गुरुदेव ने मुझसे पूछा, ‘क्या तुम सम्पूर्ण संसार से प्रेम करते हो?’ मैंने बस इतना कहा, ‘मैं प्रेम करता हूँ।’ और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘तुम्हारा काम पूर्ण हुआ।’

ईश्वर का प्रेम, ब्रह्म का प्रेम, सम्पूर्ण रूप से ग्रसित कर लेने वाला प्रेम है। एक बार आप इसका अनुभव प्राप्त कर लिया, तो यह आपको शाश्वत लोकों की ओर ले जाता चला जाएगा। वह प्रेम आपके हृदय से कभी भी अलग नहीं किया जाएगा। यह वहाँ प्रचण्ड होगा, और इसकी अग्नि में आप ब्रह्म के महान् चुम्बकत्व को पाएँगे जो दूसरे व्यक्तियों को आपकी ओर खींचता है, और वे सब कुछ जिनकी आपको वास्तव में आवश्यकता या इच्छा है, आपकी ओर आकर्षित करता है।

यह याद रखो : मेरे इस संसार को छोड़ने के बाद केवल प्रेम ही मेरा स्थान ले सकता है। ईश्वर के प्रेम में दिन और रात इतनी डूब जाओ कि तुम्हें ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ भी याद न रहे; और वही प्रेम तुम सभी को दो।

— परमहंस योगानन्दजी ने अपने शरीर त्याग से कुछ समय पहले श्री दया माता (एसआरएफ़ की तीसरी अध्यक्ष) से कहा

इस विषय पर परमहंस योगानन्दजी से अधिक प्रेरणा के लिए हमारी वेबसाइट पर “आदर्श जीवन का ज्ञान” अनुभाग में, “प्रेम : मानवीय और दिव्य” पृष्ठ पर देख सकते है।

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