अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पहल की शक्ति का उपयोग — परमहंस योगानन्द

16 जनवरी, 2024

एक परिचय :

जब कि आप एक नए वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं जो संभावनाओं से भरा हुआ है — इसकी नवीन संभावनाओं और आशा की जीवंत भावना के प्रति ग्रहणशील — हम आपके सभी योग्य आध्यात्मिक और भौतिक लक्ष्यों को निरंतर ऊपर उठाने के रहस्य पर परमहंस योगानन्द के ज्ञानपूर्ण दृष्टिकोण को आपके साथ साझा करना चाहते हैं।

वे अपने आलेख “प्रथम प्रयास करने की शक्ति का विकास करना” (मानव की निरन्तर खोज पुस्तक में उपलब्ध), में लिखते हैं : इस संसार के विराट दृश्य, जहाँ मानव जाति का विशाल जनसमूह अपने जीवन भर हड़बड़ी में दौड़ा चला जा रहा है, पर दृष्टि डालें तो, व्यक्ति आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता कि यह सब क्या है? हम जा कहाँ रहे हैं? हमारा उद्देश्य क्या है? हमारे लक्ष्य तक पहुँचने का उत्तम एवं अति विश्वसनीय मार्ग कौन सा है?

पहल, परमहंसजी उस आलेख में कहते हैं, मानव होने के सबसे महान गुणों में से एक है। और प्रत्येक आत्मा के भीतर विद्यमान अनंत क्षमता की गहरी समझ के साथ वे अपने पाठकों से पूछते हैं : “आपने इस दिव्य उपहार के साथ क्या किया है? कितने लोग वास्तव में अपनी रचनात्मक क्षमता का उपयोग करने का प्रयास करते हैं?”

जब कि आप अपने ध्यान और गहराई से करें तथा अपने स्वप्नों को साकार करने के लिए प्रयास करें, हम आपको पहल के इस महत्वपूर्ण आत्मिक-गुण को जीवन में उतारने के लिए 2024 के इस पहले न्यूज़लेटर का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं — और इस नए वर्ष में वास्तव में दिव्य प्रोत्साहन और सहायता अनुभव करने के लिए भी।

विश्वास कीजिए कि पहल करने वाला व्यक्ति बनने की शक्ति आपमें है, जैसी परमहंसजी ने कल्पना की थी : “…एक टूटते सितारे की भांति देदीप्यमान — शून्य से कुछ सृजित करना, परमात्मा की महान् आविष्कारक शक्ति द्वारा असंभव को संभव बनाना।”

परमहंस योगानन्दजी के प्रवचनों एवं लेखन से :

स्वयं से यह प्रश्न पूछें : “क्या मैंने कभी ऐसा कार्य करने का प्रयत्न किया है जिसे किसी अन्य ने न किया हो?” यह सृजनात्मक शक्ति के उपयोग की प्रारम्भिक अवस्था है।

पहल सृजनशक्ति है…यह कार्यों को नए तरीकों से करने का प्रयास है, और नई चीजों को रचने का प्रयास है। पहल करने की शक्ति वह सृजनात्मक सामर्थ्य है जो आपको अपने सृष्टिकर्ता से सीधे प्राप्त होती है।

जब भी आप किसी अ‌द्भुत वस्तु की रचना करना चाहें, तो आप तब तक निश्चल होकर गहन ध्यान में बैठे रहें जब तक कि आप उस अनन्त, आविष्कारक, रचनात्मक शक्ति से सम्पर्क न कर लें जो कि आपके भीतर है। कुछ नया करने का प्रयत्न करें, लेकिन यह विश्वास रखें कि आप जो भी कर रहे हैं उसके पीछे वह महान् रचनात्मक मूल स्रोत है, और वह रचनात्मक मूल स्रोत आपको सफल बनाएगा।

ब्रह्माण्डीय शक्ति के साथ अन्तर्सम्पर्क कर लें, और चाहे आप किसी उद्योगशाला में कार्य कर रहे हों अथवा व्यावसायिक संसार में लोगों से मिल-जुल रहें हों, सदा प्रतिज्ञापन करें : “मेरे अन्दर अनन्त रचनात्मक शक्ति है…। मैं ईश्वर की शक्ति हूँ, जो मेरी आत्मा का बलशाली स्रोत है। मैं व्यवसाय के जगत् में, विचारों के जगत् में, ज्ञान के जगत् में रहस्यो‌द्घाटनों का सृजन करूँगा। मैं और मेरे परमपिता एक हैं। मैं जो इच्छा करूँ उसका सृजन कर सकता हूँ, जैसे मेरे सृजनात्मक परमपिता करते हैं।”

महान् बनने का, इस असाधारण पहल करने की शक्ति को प्राप्त करने का एक तरीका है। ज्ञान के द्वारा, उचित प्रशिक्षण के द्वारा और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन [योगदा सत्संग] की शिक्षाओं के अभ्यास द्वारा आप उस पहल करने की शक्ति का विकास कर सकते हैं और उसे पूरी तरह प्रयोग में ला सकते हैं।

मेरे गुरु, श्रीयुक्तेश्वरजी प्रायः कहते थे, “इसे याद रखो : यदि आपके अन्तर में वह विश्वास है जो वास्तव में ईश्वरीय है, और यदि आपको किसी ऐसी वस्तु को पाने की इच्छा है जो इस ब्रह्माण्ड में नहीं है, तो वह आपके लिए उत्पन्न की जाएगी।” मुझे अपनी इच्छाशक्ति के आन्तरिक एवं आध्यात्मिक बल पर अत्यधिक दृढ़ विश्वास था, और मैं सदा पाता था कि जो कुछ भी मैं चाहता था उसे पाने के लिए कुछ न कुछ नए अवसर पैदा किए जाते थे।

आपको अपनी इच्छा-शक्ति का प्रयोग करना ही चाहिए। यदि आप अपना मन बना लें और एक ज्वाला की तरह आगे बढ़ें, तो आपके रास्ते की हर बाधा भस्म हो जाएगी।

आप इसी प्रकार की इच्छाशक्ति को विकसित करें—ऐसी इच्छाशक्ति जो आवश्यकता पड़ने पर, किसी के भले के लिए सागर को भी सुखा दे। सर्वोच्च इच्छाशक्ति ध्यान करने के लिए प्रयोग करनी चाहिए। ईश्वर हमसे चाहते हैं कि हम अपनी दिव्य इच्छाशक्ति को प्रकट करें और उसे ईश्वर प्राप्ति के लिए उपयोग करें। ईश्वर की खोज करने वाली इस दृढ़ इच्छाशक्ति को विकसित करें। गूढ़ शब्द आपको मुक्ति प्रदान नहीं करेंगे, बल्कि ध्यान के द्वारा आपके अपने प्रयत्न आपको मुक्ति प्रदान करेंगे।

वाईएसएस ब्लॉग पर, आप परमहंस योगानन्द का एक दृष्टांत पढ़ सकते हैं कि जब उनके गुरु ने उनसे कहा कि इस जीवन में उन्हें ज्ञान का शिक्षक बनने की आवश्यकता होगी तो उन्होंने कैसे दैवीय पहल की शक्ति का उपयोग किया। परमहंसजी का व्यक्तिगत विवरण वास्तव में प्रेरणादायक है, जिस प्रकार इस पोस्ट में दी गई उनकी सलाह कि आप — इस समय या किसी अन्य समय — अपने स्वयं के कार्यों में विजयी बनने के लिए कैसे दृष्टिकोण अपना सकते हैं।

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