“सच्ची भक्ति क्या है?” इस प्रश्न पर भगवान् कृष्ण का उत्तर

9 फरवरी, 2024

कमल

यह निम्नलिखित कहानी “भक्ति कैसे अदृश्य ईश्वर को प्रकट करती है” एसआरएफ़ संन्यासी स्वामी कमलानन्द गिरि द्वारा अपने एक सत्संग में बताई गई थी, जो साप्ताहिक वाईएसएस/एसआरएफ़ ऑनलाइन प्रेरणादायक सत्संग श्रृंखला का हिस्सा था। सम्पूर्ण सत्संग यहाँ देखा जा सकता है।

एक दिन भगवान् कृष्ण अपने कुछ शिष्यों के साथ एक नदी के किनारे बैठे प्रकृति की शांति का आनंद ले रहे थे। कुछ समय बाद एक शिष्य ने प्रश्न किया : “भगवान् कृष्ण, क्या आप हमें बता सकते हैं कि सच्ची भक्ति क्या है? एक सच्चा भक्त वास्तव में भक्ति का अभ्यास कैसे करता है?”

श्रीकृष्ण हमेशा आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझने में अपने शिष्यों की सहायता करने में रुचि रखते थे, इसलिए उन्होंने उस शिष्य से कहा : “तुम नदी पर जाओ और नदी के तल से एक पत्थर उठाकर मेरे पास ले आओ।” शिष्य ने वैसा ही किया और एक छोटा सा पत्थर लाकर श्रीकृष्ण को दे दिया।

श्रीकृष्ण ने कहा, “देखो यह पत्थर बाहर से कितना गीला है। अब इस पत्थर को दो टुकड़ों में तोड़ दो।” शिष्य ने एक बड़ा पत्थर उठाया और उससे उस पत्थर को आधा तोड़ दिया।

श्रीकृष्ण ने कहा : “देखो, यह पत्थर बाहर से गीला होने पर भी अंदर से एकदम सूखा हुआ है। यह उन भक्तों की तरह है जो केवल बाहरी तौर पर ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम से ओत-प्रोत होते हैं, और केवल तभी तक जब तक वे आध्यात्मिक वातावरण में, आदर्श परिस्थितियों में रहते हैं। उनका भीतरी भाग अप्रभावित ही रहा है, पूरे समय शुष्क ही रहा है। और जिस क्षण उन्हें उस आध्यात्मिक वातावरण से हटा दिया जाता है, उनकी भक्ति लुप्त हो जाती है।”

शिष्य ध्यान से सुन रहे थे। तब श्रीकृष्ण उठे और नदी के पास गए और अपने पीताम्बर के किनारे को पानी में डुबो दिया।

वे इसे वापस शिष्यों के पास लाए और कहा : “देखो, ये धागे कैसे भीग गए हैं कि इनमें से पानी टपक रहा है? अधिकतर भक्त ऐसे ही होते हैं। वे भक्ति से ओत-प्रोत हैं, ईश्वर के प्रति प्रेम से सराबोर। परन्तु जैसे ही मैं अपना पीताम्बर पानी से बाहर निकालूंगा हवा उसे सुखा देगी और कुछ देर में पानी का कोई अंश भी नहीं रहेगा।

“तो इसी तरह, जब ये भक्त धर्मपरायण गतिविधियों से घिरे होते हैं और आध्यात्मिक संगति में होते हैं, तथा ध्यान, प्रार्थना और पूजा करते हैं, तो वे भक्ति से संतृप्त होते हैं। परन्तु जैसे ही उन्हें संसार में वापस भेजा जाता है, उनकी भक्ति गायब हो जाती है।”

शिष्य यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि उनके गुरु आगे क्या करने वाले हैं। एक क्षण बाद, श्रीकृष्ण ने एक शिष्य को चीनी की एक गांठ दी और कहा, “जाओ और इसे पानी में फेंक दो,” शिष्य ने वैसा ही किया।

फिर एक मिनट के बाद श्रीकृष्ण ने कहा, “जाओ और उसे ले आओ।” शिष्य ने जाकर देखा परन्तु चीनी तो पानी में घुल चुकी थी और कहीं नहीं मिली। श्रीकृष्ण ने कहा : “एक सच्चा भक्त ऐसा ही होता है। वह अपने अहंकार को भगवान् में विलीन कर देता है। फिर कोई अलगाव नहीं रह जाता है। वे एक हैं।”

कमल

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