हाल ही में संपन्न वाईएसएस/एसआरएफ़ संन्यास दीक्षा — एक प्राचीन परम्परा का अनुसरण

9 मई, 2024

जुलाई 1915 में, जब परमहंस योगानन्द ने भारत के श्रीरामपुर में अपने गुरु, स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी से संन्यास (संसार का त्याग) की शपथ ली तब उन्हें भारत के संन्यासियों के प्राचीन स्वामी सम्प्रदाय में दीक्षा दी गई। यह अवसर न केवल बाईस वर्षीय मुकुंद लाल घोष के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया — जो उस समय स्वामी योगानन्द गिरि बन गए थे — अपितु 20वीं शताब्दी और उसके बाद जागृत होती वैश्विक आध्यात्मिकता पर उनके प्रभाव की पूर्वसूचना भी थी। कम-से-कम उस संन्यास परम्परा के कारण जिसे उन्होंने अपनी स्थायी विरासत के एक अंग के रूप में स्थापित किया था।

जिस प्राचीन स्वामी संप्रदाय से परमहंस योगानन्द जुड़े थे, वह आज योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के संन्यासी समुदायों में फल-फूल रहा है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व से अनेक देशों के संन्यासी शामिल हैं। यह संन्यास परम्परा वाईएसएस/एसआरएफ़ के वैश्विक विकास को बनाए रखती है और सभी देशों के बीच योग के व्यापक प्रसार में सहायता करती है।

हाल ही में सम्पन्न संन्यास दीक्षा समारोह

गुरुवार, 21 मार्च, 2024 को, लॉस एंजिलिस में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय के मुख्य मन्दिर में आयोजित एक समारोह में, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के दो संन्यासियों और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के ग्यारह संन्यासियों ने वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख श्री श्री स्वामी चिदानन्द गिरि से संन्यास की अंतिम दीक्षा प्राप्त की।

जब कोई संन्यासी संन्यास की अंतिम दीक्षा लेता है (अनेक वर्षों के संन्यास प्रशिक्षण और आत्म-अनुशासन के बाद), तो उसे एक नया नाम दिया जाता है जो एक विशेष दिव्य गुण के माध्यम से ईश्वर, या परम आनन्द के साथ मिलन की आकांक्षा को दर्शाता है, जैसा कि परमहंसजी ने अपनी योगी कथामृत (अध्याय “मेरा सन्यास ग्रहण : स्वामी संस्थान के अंतर्गत”) में समझाया है।

नीचे 21 मार्च को संपन्न दीक्षा समारोह के समापन के तुरन्त बाद नए संन्यासियों का चित्र है।

खड़े, बाएँ से : स्वामी असीमानन्द, गणेशानन्द, और बोधानन्द; वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरि; स्वामी संजयानन्द, शांतिमय और पुण्यानन्द। बैठे, बाएँ से : स्वामी शंकरानन्द; शरणानन्द, योगेशानन्द, सख्यानन्द, विद्यानन्द, मैत्रिमय और निर्मलानन्द।

संन्यासियों के नए नामों के अर्थ

स्वामी असीमानन्द : अनंत के साथ एकत्व के माध्यम से आनंद; स्वामी गणेशानन्द : ज्ञान और सफलता के भगवान्, “बाधाओं को हटाने वाले” की भक्ति के माध्यम से आनंद; स्वामी बोधानन्द : भगवान् के प्रति जागृत जागरूकता के माध्यम से आनंद; स्वामी संजयानन्द : स्वयं पर पूर्ण विजय के माध्यम से आनंद जो दिव्य आत्मनिरीक्षणयुक्त अंतर्दृष्टि से प्राप्त होता है; स्वामी शांतिमय : वह जो शांति, दिव्य शांति से ओत-प्रोत है (या होना चाहता है); स्वामी पुण्यानन्द : पुण्य कार्यों के माध्यम से आनंद; स्वामी शंकरानन्द : कृपालु भगवान् के माध्यम से आनंद; स्वामी शरणानन्द : ईश्वर की शरण या आश्रय लेने से आनंद; स्वामी योगेशानन्द : योग में निपुणता के माध्यम से आनंद; स्वामी सख्यानन्द : भगवान् को अपने घनिष्ठ मित्र के रूप में प्रेम करने से आनंद; स्वामी विद्यानन्द : ईश्वर की दिव्य प्रज्ञा और ज्ञान के माध्यम से आनंद; स्वामी मैत्रीमय : प्रेमपूर्ण दयालुता से ओत-प्रोत; स्वामी निर्मलानन्द : पवित्रता के माध्यम से आनंद।

परमहंस योगानन्द के कार्य को आगे बढ़ाना

क्रियायोग ध्यान की अपनी दैनिक साधना के अतिरिक्त, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के संन्यासी विभिन्न प्रकार से सेवा प्रदान करके परमहंसजी के काम को आगे बढ़ाते हैं — जिसमें भारत और आसपास के देशों के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक व्याख्यान यात्राएँ और कक्षाएँ भी आयोजित की जाती हैं; साधना संगमों में व्याख्यान देना; सार्वजनिक कार्यक्रमों में लोगों का स्वागत करना; कार्यालय का काम करना; संस्था के आश्रमों, केन्द्रों और एकांतवासों का प्रशासन करना; वाईएसएस पुस्तकों और रिकॉर्डिंग के प्रकाशन और वितरण की देखरेख करना; और आध्यात्मिक विषयों पर साधकों को परामर्श देना।

आप हमारी वेबसाइट के “संन्यास परम्परा” अनुभाग पर परमहंस योगानन्दजी के आश्रमों में संन्यास यात्रा के विभिन्न चरणों के बारे में अधिक जान सकते हैं।

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